आखिर गालियां क्यों देते हैं लोग

तेरी बहन की…कार पीछे कर,’’ गली के एक कोने से आवाज आई, तो दूसरी तरफ से सुनाई पड़ा, ‘‘तेरी मां की… तू पीछे कर अपनी कार.’’ हुआ यह था कि एक कार की पार्किंग के लिए अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले 2 व्यक्ति एकदूसरे को जी भर कर मां-बहन की गालियां दे रहे थे. क्या अपने को मर्द कहने वाले ये लोग अपने दम पर एक कार तक पार्क नहीं कर सकते थे?

आजकल हम अकसर घरों, बाजारों और ऑफिसों में इस तरह की भाषा का प्रयोग होते देखते हैं. मजे की बात तो यह है कि इस तरह की भाषा का प्रयोग लड़कों के साथसाथ लड़कियां भी करती मिल जाती हैं. यह एक ऐसी मानसिकता है, जो दर्शाती है कि आज के इस आधुनिक युग में लड़कियां अपने को लड़कों के बराबर दर्शाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं. उस के लिए चाहे अभद्र भाषा का प्रयोग ही क्यों न करना पड़े. 

किसी औरत का बलात्कार हो जाता है, तो उस के साथ थोड़ीबहुत सहानुभूति देखी जाती है. उस के इंसाफ की भी आवाज उठाई जाती है. पर हर घर, हर गली, हर नुक्कड़ पर रोज न जाने कितनी बार एक औरत के कपड़े उतारे जाते हैं. न जाने दिन में कितनी बार उस के गुप्तांगों की चर्चा की जाती है. न जाने कितने मर्द बिना डर के सरेआम अपनी जबान से निकाली गालियों द्वारा औरतों का बलात्कार करते हैं. पर उन्हें रोका नहीं जाता, उन्हें सजा नहीं दी जाती.

औरत ही निशाना क्यों

बस में एक कालेज जाने वाली लड़की ने 2-3 बार एक लड़के को ठीक से खड़ा होने को कहा. पर जब वह लड़का नहीं माना तो उस लड़की ने आसपास खड़े लोगों से कहा. तब कुछ लोग उस लड़के पर टूट पड़े. किसी ने कहा, ‘‘साले तेरी बहन की… क्या तेरे घर में मांबहन नहीं हैं?’’

तो किसी ने कहा, ‘‘कुत्ती की औलाद लड़की छेड़ता है,’’ यानी हर तरफ से गलियां की बौछार होने लगी और उस लड़के को बस से उतार दिया गया. अब जरा सोचिए, उस लड़के ने एक लड़की को छेड़ा और उस के बाद उस लड़की की मदद करने वाले उस बस के हर मर्द ने औरतों को जलील किया. पर ऐसा करने पर उन लोगों का किसी ने विरोध नहीं किया. क्यों किसी को जलील करने के लिए महिलाओं को जलील किया जाता है? क्यों उन के निजी अंगों को इस प्रकार गालियों के जरिए बोल-बोल कर सरेआम खोल कर रख दिया जाता है?

गालियां तोड़तीं औरतों का मनोबल

समाज का एक बड़ा वर्ग औरतों को समान अधिकार देने के दावे करता है पर उसी समाज में औरतों का मनोबल तोड़ने के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया जाता है. ऑफिस में अगर किसी महिला कर्मचारी को तरक्की मिले तो पुरुष कर्मचारी कहते हैं, ‘‘देखा…कुत्ती औरत होने का फायदा उठा रही है. बौस के साथ सोई होगी वरना इतनी जल्दी तरक्की कैसे मिल जाती?’’

इस के अलावा यदि कोई औरत आधुनिक कपड़ों में औफिस जाती है या रात को देर से घर आती है, तो समाज के लोग कहते हैं, ‘‘चालू है रात भर मजे मारती है’’ और इस के विपरीत अगर कोई मर्द औफिस से देर से आता है, तो कहते हैं, ‘‘बेचारा कितनी मेहनत करता है.’’ 

बिना बात के भी दी जाती हैं गालियां

निधि का पति उस के और अपने बच्चों के साथ टीवी पर क्रिकेट का मैच देख रहा था. अचानक भारतीय खिलाड़ी ने कैच छोड़ दिया तो वह जोरजोर से चिल्लाने लगा, ‘‘इस की मां की… साले बहन… ने कैच छोड़ दिया.’’ उस के पास बैठी उस की 5 साल की बेटी ने निधि की ओर देखा और कहा कि मम्मी, पापा गंदी बात क्यों कर रहे हैं? 

कई लोगों को बातबात पर मां और बहन की गाली देना का जैसे शौक होता है. हर वाक्य के बाद उन के मुंह से गाली निकलती है. उन को यह तक खयाल नहीं रहता कि उन के आसपास उन की मांबहनें और बच्चे भी हैं. इस तरह के वाक्यों और गलियों का असर हमारे आने वाले कल यानी हमारे बच्चों पर पड़ता है.

बच्चे भी बन रहे ऐसे

एक पार्क में 12 से 15 साल के कुछ बच्चों के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया. देश का भविष्य कहे जाने वाले इन बच्चों की जबान से मां-बहन की गालियां इस तरह निकल रही थीं जैसे यह इन सब के लिए रोज की सामान्य भाषा हो. एक बच्चे के वाक्य ने तो मुझे अंदर तक हिला दिया. उस ने कहा, ‘‘ज्यादा बोलेगा तो तेरी बहन की… में मिर्च डाल दूंगा.’’ इस वाक्य को सुनने के बाद मुझे 16 दिसंबर का दामिनी केस याद आ गया, जिसमें कुछ हैवानों ने उस लड़की के निजी अंगों को छलनी कर दिया था. शायद उन लोगों की मानसिकता बचपन से ही औरत के निजी अंगों के साथ इस तरह की हैवानियत करने की रही होगी और आज पार्क में गालियां देते ये बच्चे भी कुछ हद तक उसी राह पर थे. दरअसल, वे इतनी छोटी उम्र में ही जान चुके हैं कि अगर किसी को नीचा दिखाना हो, तो उस के घर की महिलाओं पर आक्रमण करो. उस की मां या बहन को गाली दो. बदला लेने के लिए महिलाओं पर हमले की भावना आगे जा कर समाज के लिए घातक है, यह बात हमें समझनी चाहिए.

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